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लेखनी कहानी -10-Nov-2022 रूठी रानी

यूं तो इतिहास में बहुत से राजा रानी प्रसिद्ध हुए हैं । कोई पराक्रम के लिए तो कोई सुंदरता के लिए । मगर "रूठी रानी" प्रसिद्ध हुई थी अपने "मान" के लिए । आज "रूठी रानी" की बात करते हैं । 
सन 1532 में जोधपुर में मालदेव राजा बने । उस समय जोधपुर एक छोटी सी रियासत थी । मालदेव ने अपने पराक्रम, बुद्धि और कूटनीति से जोधपुर रियासत को हरियाणा, उत्तर प्रदेश और गुजरात तक विस्तारित कर दिया था । उस समय दिल्ली पर मुगल शासक हुमायूं शासन कर रहा था और अफगान शेरशाह सूरी दिल्ली पर आक्रमण करने की तैयारी कर रहा था । राजा मालदेव इस अवसर का भरपूर लाभ उठा रहा था । 
मालदेव के शौर्य की गाथा संपूर्ण राजपूताने में फैल रही थी । राजपूताने के लगभग समस्त राजाओं ने अपनी बहन बेटियों का विवाह राजा मालदेव से कर दिया था और अपनी रियासत को बचा लिया था । जैसलमेर के भाटी राजपूत भी राजा मालदेव से पीड़ित थे क्योंकि मालदेव ने उन्हें पराजित कर दिया था और उनका अपमान भी किया था । 
जैसलमेर की राजकुमारी उमा दे अपने रूप और सौन्दर्य के कारण विख्यात हो गई थी । उसकी आंखें इतनी सुन्दर थीं कि जो कोई उन्हें देख लेता था, वह उन्हीं का हो जाता था । गुलाब की पंखुड़ियों से कोमल अधर लाल सुर्ख थे जैसे कि सुबह का उगता हुआ सूरज हों । तीखे नैन नक्श किसी का भी होश उड़ाने की क्षमता रखते थे । पदमावती के बाद अगर किसी के सौन्दर्य की चर्चा इतिहास में हुई है तो वह राजकुमारी उमा दे ही थी । अपनी अल्हड़ अदाओं से भी वह अभिमानिनी प्रसिद्धि को प्राप्त हो रही थी । जितना डंका मालदेव की वीरता का बज रहा था उससे कहीं ज्यादा उमा दे की सुंदरता का बज रहा था । लोग उसे "जादूगरनी" कहते थे । उसके हुस्न में ऐसा जादू था जो सबको मंत्र मुग्ध कर देता था । 
मालदेव ने भी उमा दे के सौन्दर्य की ख्याति सुनी थी । दूसरे राजाओं की तरह मालदेव भी उसके हुस्न का दीवाना हो गया था । यद्यपि उसके रनिवास में एक से बढकर एक सुन्दर रानियां थीं मगर उमा दे की बात ही कुछ और थी । उमा दे वह शराब थी जिसे कोई किस्मत वाला ही हासिल कर सकता था क्योंकि उसका नशा कभी उतरता नहीं था । 
जोधपुर के मालदेव और जैसलमेर की उमा दे क्रमश : वीरता और सौन्दर्य के पर्याय बन गये थे । इस संबंध में एक दोहा बहुत प्रचलित है 
मारवाड़ नर नीपजै, नारी जैसलमेर 
सिंधा तुरी सांतरा, करही बीकानेर  
अर्थात मारवाड़ जैसा योद्धा, जैसलमेर जैसी सुंदर स्त्री , सिंध जैसे घोड़े और बीकानेर जैसे ऊंट संसार में और कहीं नहीं हैं । 
इस प्रकार राजकुमारी उमा दे के सौन्दर्य की ख्याति दूर-दूर दूर तक फैली हुई थी । राजा मालदेव ने उमा दे से विवाह का प्रस्ताव भाटी राजा को भेज दिया । राजकुमारी उमा दे भी मालदेव के शौर्य के प्रति आकर्षित थी । यद्यपि जैसलमेर राजघराना मालदेव से नफरत करता था मगर उसे मना करने का साहस भी नहीं था उनमें । मालदेव का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया और उन दोनों का विवाह संपन्न हो गया । मालदेव उमा दे को लेकर जोधपुर आ गये । 
सुहागरात को पूरा महल बहुत अच्छी तरह से सजाया गया । रानी उमा दे के सौन्दर्य को और निखारने के लिए विशेषज्ञों की सेवाएं ली गईं । राजा मालदेव अपने सामंतों के साथ महफिल सजाए बैठे थे जहां एक से बढकर एक शराब लौंडियों के द्वारा परोसी जा रही थी । राजा मालदेव शराब और नाच गाने में मस्त हो गये । उन्हें होश ही नहीं रहा कि आज उनकी सुहागरात है । 
रानी उमा दे उनका इंतजार करती रही । दासियों के द्वारा बार बार संदेशा भिजवाती रही मगर मालदेव तो रास रंग में रमे हुए थे । अंत में रानी उमा दे ने अपनी सबसे खास बांदी "भारली" को राजाजी के पास भेजा और कहा कि उन्हें लेकर ही आये । मिलन की रात जाने को थी । सुबह होने को थी । 
भारली दासी भी कम सुन्दर नहीं थी । नये कपड़े और गहनों में वह भी रानी जैसी लग रही थी । भारली राजा मालदेव के पास उमा दे का संदेश लेकर पहुंची तो मालदेव उसके सौन्दर्य पर रीझ गये और उसे अपने पास बैठा लिया । उसे शराब पिलाने के लिए कहा । भारली को यह उम्मीद कतई नहीं थी कि उसे राजा मालदेव का "सामीप्य" नसीब होगा । वह इस अवसर को भुनाने में लग गई और राजा मालदेव की अंकशायनी हो गई । 
जब भारली मालदेव को लेकर उमा दे के पास नहीं पहुंची तो उमा दे परेशान हो गई । रात लगभग पूरी बीत चुकी थी । गुस्से के मारे वह स्वयं ही मालदेव के पास पहुंच गई । वहां उसने मालदेव और दासी भारली को आलिंगनबद्ध अवस्था में देखा तो वह आगबबूला हो गई । उसने आरती का थाल उलट दिया । महल के सारे दीपक बुझा दिये और अपने महल के कपाट बंद करा दिये । 
सुबह मालदेव को जब होश आया तब उसे अपनी भूल का अहसास हुआ । वह उमा दे के महल में गया और रानी की बहुत मिन्नतें की मगर रानी मानिनी थीं । उसके न केवल सौन्दर्य का अपमान हुआ था अपितु रानीत्व का भी अपमान हुआ था । एक रानी की अपेक्षा एक दासी के साथ मालदेव का "बगलगीर" होना उसे बहुत अखरा था। "सुहागरात " उसकी थी पर मनाई थी भारली के साथ । इस बात को वह कैसे भूल सकती थी । 
उसके पश्चात उमा दे ने कभी भी मालदेव से बात नहीं की । यद्यपि उसने मालदेव को पति ही माना और पति के रूप में उनका कभी तिरस्कार नहीं किया पर अपने सौन्दर्य और स्वाभिमान का मान रखते हुए उन्हें कभी छूने का हक नहीं दिया । 
जब मालदेव की मृत्यु हुई तब वह भी सती हो गई । इस तरह उस मानिनी रानी ने एक पत्नी के सम्मान की रक्षा की । इतिहास में रानी उमा दे "रूठी रानी" के नाम से जानी जाती हैं । 

श्री हरि 
10.11.22 

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6 Comments

Rafael Swann

14-Nov-2022 11:58 PM

Anupam 👌👏

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Supriya Pathak

12-Nov-2022 12:43 PM

Bahut sundar

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Khan

11-Nov-2022 10:50 AM

Bahut khoob 😊

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